नई दिल्ली: जब से कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत हुई है, तब से इस बीमारी के बारे में हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं। हाल ही में हुई एक स्टडी से पता चलता है कि कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से पार्किंसन बीमारी का ख़तरा बढ़ सकता है।
चूहों पर हुआ शोध
कुछ समय पहले चूहों पर किए गए एक अध्यनन से बात का पता चला है। कोविड-19 संक्रमण होने पर आमतौर पर मरीज़ ब्रेन फॉग, सिर दर्द और नींद न आने की शिकायत करते हैं, शोधकर्ताओं ने कहा कि ये ऐसी जटिलताएं हैं, जो वाइरल इंफेक्शन होने के बाद देखी जाती हैं और नई नहीं हैं।
नए शोध ने बढ़ाई चिंता
उन्होंने कहा कि सन 1918 में हुई इंफ्लूएंज़ा महामारी के बाद मरीज़ों में पार्किंसन बीमारी विकसित होने में करीब 10 साल लग गए थे। जर्नल मूवमेंट डिस्ऑर्डर में प्रकाशित स्टडी में पाया गया कि SARS-CoV-2 वायरस मस्तिष्क की संवेदनशीलता को एक ऐसे टॉक्सिन के रूप में बढ़ा सकता है, जो पार्किंसन रोग में देखी गई तंत्रिका कोशिकाओं में मृत्यु का कारण बनता है।
अमेरिका की थॉमसन जेफरसन यूनिवर्सिटी के स्टडी के पहले लेखक रिचर्ड स्मेने ने बताया, “पार्किंसन एक दुर्लभ बीमारी है, जो 55 साल की ऊपर की आबादी के दो प्रतिशत लोगों को प्रभावित करती है। ऐसे में इस बीमारी के ख़तरे की आशंका बढ़ने से परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। हालांकि, कोविड किस तरह से हमारे दिमाग़ को प्रभावित करता है, इसे समझना बेहद महत्वपूर्ण है ताकि हम इस बीमारी से निपटने की तैयारी कर सकें।”
शोध से क्या पता चलता है
शोध में पाया गया है कि कोरोना वायरस चूहों के मस्तिष्क के नर्व्स सेल को उन टॉक्सिन के प्रति सेंसिटिव बना देता है, जिसे पार्किंसन के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है और जिससे दिमाग की कोशिकाओं को क्षति पहुंचती है।
